Sunday की सुबह, आराम से अपने gadgets के साथ time बिता रहा था। तभी flat के बहार से ढोल की तेज़ आवाज़ ने disturb कर दिया। मन में विचार आया की ये क्या अनन्याय है? अपने घर में भी शांति से नहीं रह सकते है क्या?
जब balcony में जा के देखा तो विचार गधे के सिंग की तरह गायब हो गए । एक 7 - 8 साल की लड़की पतली से रस्सी पे करतब दिखा रही थी। उसकी माँ थाली बजा रही थी और भाई ढोल। पहले round में सर पर बर्तन रख कर चलना था, फिर slipper पहन कर, फिर थाली को पैरों में ले कर, etc । हर round के साथ difficulty level और बढ़ जाता। इसी बीच 3 - 4 लोग अपने घर से बहार निकल के तमाशा देखने आ गए। अपने साथ अपने बच्चो को भी ले आये।
तमाशा खत्म होने पर किसी ने ताली नहीं बजाई। सब पैसे देने के डर से ऐसे बर्ताव करने लगे जैसे उन्होंने तो कुछ देखा ही नहीं। कुछ लोगो ने चिल्लर निकल कर दान धर्म पूरा कर लिया। ये बताना ज़रूरी नहीं है की पैसे थाली में दूर से डाले गए जैसे की वो अछूत हो। पैसे ले कर ये 3 सदस्य परिवार बिना वक्त ज़ायर किये अपना सामान उठा कर आगे (अगले show के लिए) चला गया। और मैं नम आखो से blogger खोल कर बैठ गया।
दोष किसको देता - 300 साल के मुग़ल राज को ? 200 साल के अंग्रेजी साम्राज्य को ? 60 साल के congress राज को ? या 7 महीने पुरानी अच्छी सरकार को ? क्युकी दोष देना तो ज़रूरी है न। हिन्दू मुस्लमान को दोषी कहते है, मुस्लमान हिन्दू को। पिछड़े ब्राह्मण को और ब्राह्मण reservation को। congress bjp को और bjp बाकी सबको।
जिस देश में बच्ची को अपना पेट भरने के लिए जानलेवा करतब करने पड़ते है वो देश तो दोष साबित करने में मग्न है। किसी और की बेटी को ऐसा करते दिखने के लिए अपनी बेटी को भी साथ में लाया जाता है। तमाशा ख़त्म होने पर साफ़ सुथरे कपडे पहनी convent स्कूल की बच्ची एक निर्जीव आँखों वाली लड़की को 10 का नोट देती है। क्या यही है वो गौरवशाली भारतीय संस्कृति जिसका उल्लेख Chinese, Greek और European किया करते थे।
आजम खान, योगी आदित्यनाथ और ओवैसी के लिए हिन्दू या मुस्लमान होना बड़ा है चाहे ऐसी बच्चियों का पेट भरे या नहीं। उन्हें क्या मतलब। चाहे देश का प्रधान सेवक लाल किले से 10 साल कोमी एकता का आह्वान कर ले। निरंजन ज्योति को क्या मतलब। VHP को क्या मतलब। वो तो बस गिनती देखते है। इतने मुस्लमान और इतने हिन्दू। कितने भूखे मुस्लमान और कितने भूखे हिन्दू इससे उन्हें क्या लेना। बस गिनती बढ़ जानी चाहिए जैसे Agra में बढ़ गयी।
आज देश की दुर्दशा ऐसी है की विकास के model को छोड़ कर सभी लोगो को अपना धर्म, अपनी जाति याद आ रही है। जब सत्यार्थी को दुनिया सम्मान दे रही होती है तब हम गोडसे जैसे हत्यारे को सम्मान स्वरूप clean-chit दे रहे होते है। वह रे मेरे देश।
जन-गण-मन लिखने वाले Tagore ने "where the mind is without fear" भी लिखी थी। P V Vartak का बस चलता तो इस कविता को भी देश विरोधी बोल देते। पर मुझे लगता है आज के इस भारत को Tagore की बात को सुनने की ज़रूरत है। इसे संजीदगी से पढ़े और सोचे क्या हमे ऐसा भारत देश नहीं चाहिए, क्या अब इस देश को नींद से नहीं उठ जाना चाहिए। ....
जगाओ मेरा देश, जगाओ मेरा देश
मन में भय की बूँद भी न हो , माथा ऊंचा लहराए
ज्ञान मुक्त आज़ाद ले साँसे , धरती बाँट न पाये
सच की कोख से शब्द जनम ले , कर्म की धरा कल कल
दौड़े रेगिस्तान चीर दे नदी विचार की छल छल
चौड़ा सीना अभिमान का, न हो टुकड़े टुकड़े
भाव सुरीले बंदिश में हो और सुरीले मुखड़े
प्रहार करो (हे प्रभु), प्रहार करो
जगाओ मेरा देश, जगाओ मेरा देश
(प्रसून जोशी का रहमान के लिए लिखा गया संस्करण)
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